Thursday 5 November 2015

तुम तो मानोगी न ये बात !




कुछ लमहे गुज़र कर भी नहीं गुज़रते
हमेशा साथ रहते हैं,
हमारा अंग बनकर !
तनहाई में, करीब आ जाते हैं मेरे लमहे;
सिर पर हाथ फेरते हैं,
दुलराते हैं गोद में बैठा कर।
आह.....
कभी-कभी सोचता हूँ
ये लमहे भी चले जाएंगे मेरे साथ !
चाह कर भी नहीं चखा पाऊँगा
किसी और को इनका स्वाद !!!

परसों की रात बड़ी बेचैन गुज़री।  
कुछ लोग बिना पूछे
मेरे मनमें दाख़िल हो गये
और उलट-पुलट कर डाला
भावों के घरौंदे को।
लगा जैसे चोर घुस आए दबे पाँव
मेरा सुकून चुरा लेने को।
उन्हें अब ये भी गवारा नहीं,
कि मैं तुम्हें ख़त लिखूँ।
मुझ पर तंज़ कसने लगे हैं वे लोग।  
तुम ही कहो,
प्रेम में होना कोई पाप है ?
प्रेम को लिखना, क्या अपराध है ?
मैं तो साये पर भी पैर रखने में झिझकता हूँ
फिर मुझे क्यों सताया ?
एक बे-दर्द ने !
ये कहकर,
कि तुम्हें प्रेम-पत्र लिखने के लिये
नयी-नयी प्रेरणा खोजने में, लगा रहता हूँ मैं बस !
साँस लेने के लिये भी कभी
किसी प्रेरणा की ज़रूरत हुयी भला ?
मेरे ख़त साँस हैं मेरी
तुम तो मानोगी न ये बात !

रात भर सिसका किया !
सुबह ये सोच कर उठा
कि डि-एक्टिवेट होकर सबसे दूर चला जाऊँ
मगर ज्यूँ ही कम्प्यूटर ऑन किया
मेरी आँखों के आगे,
ये तस्वीर जगमगा उठी।  
जीवन के रंगों से सजी,
अलौकिक तस्वीर !
जिसे पहली बार देखकर,
मैं सुध-बुध खो बैठा था।

कैनवस पर ब्रश चलाती
हाथों में कलर-प्लेट थामे
लमहा-लमहा सार्थक करती  
एक चित्रकार !

देखो तो प्यारी....
जीवन छलका पड़ रहा है
... इस तस्वीर से।
खिड़की से आती धूप
टोकरी में रखी कलर-ट्यूब्स
स्टैंड में खड़े,
एक-दूसरे से होड़ लेते छोटे-बड़े ब्रश !
कुछ पेंटिंग्स पूरी हो गयीं
तो कुछ बाट जोह रही हैं
.... अपनी पूर्णता की !
ज़रा खिड़की के इस पर्दे को देखो तो;
जैसे कोई राजस्थानी नवोढा
गोटेदार नारंगी साड़ी पहने
पूजा का थाल हाथों में ले
चल पड़ी हो इठलाकर !
और उधर...
लकड़ी की छोटी सी अलमारी के ऊपर
कोने में रखा वो फूलदान !
मानो किसी पेंटिंग से निकल कर,
बाहर आया हो अभी-अभी।
यक़ीन करोगी.....  
ये तस्वीर एक बच्ची ने ली है
एप्रन पहने, रंगों में रमी
अपनी माँ की तस्वीर !

अक्सर मुझे लगता है,
तुम्हारे लिये मेरा प्यार भी तो ऐसा ही है।  
दुनिया से बे-ख़बर,
अपनी कला में तल्लीन,
इस चित्रकार के जैसा !

सुनो न प्रिये
ये तस्वीर भी एक लमहा है
जिसे जी रहा हूँ मैं अपनी तरह
और जो चला जाएगा मेरे साथ !
जब-जब आहत होता हूँ;
ऐसा ही कोई लमहा,
मुझसे आ कर कहता है
 “देव,
क्यों सोचते हो इतना,
और किसके लिये?
दुनिया तो बस  दुनिया है,
और प्यार सिर्फ प्यार।
मन के नाज़ुक दरवाज़े पर,
एक छोटा सा ताला डाल दो ना !”

सखिया सुनो,
अबकी दिवाली
ये सारे रंग....
तुम्हारे लिये।
जी लो ज़िंदगी, जागती आँखों से !
ढेर सारा प्यार
.... दीपावली का !

तुम्हारा


देव 


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