Thursday 1 January 2015

“मुझमें तुम्हारी बातें”




लमहा-दर-लमहा
जाने कितनी बातें
जाने कैसी बातें
बातों में बातें, बातों की बातें .....
तुम्हारे भाव की ओढ़नी ओढ़ कर
मेरे मन में बैठी रहती हैं।

उफ़ ये तुम,
और तुम्हारी बातें।
एक रेला सरकने लगता है मुझमें
ठीक वैसे ही...
जैसे तेज़ बारिश में हो जाती है,
तुम्हारी मुंबई !!!
और उसमें भीगते, ठिठुरते, आशंकित से घर जाने को आतुर; प्रतीक्षारत लोग ...
कुछ ऐसे ही तो रेंगा करती हैं तुम्हारी बातें मुझमें।

याद है,
एक बार तुम्हारे शहर आया था
आने का मक़सद सिर्फ तुमसे मिलना था
पर तुम ही से तो नहीं मिल पाया था
बारिश जो बैरन बन गयी उस दिन !
और तुम फोन पर बोली थीं
“सुनो देव,
किसी ठिठुरते हुये इंसान को कंबल ओढ़ा देना
किसी भूखे डॉगी को बिस्किट का पूरा पैकिट खिला देना
बस....
समझ लेना हम मिल लिए ।  
मुंबई की बारिश अब पहले जैसी नहीं रही देव
मुझे भीगने का भय नहीं
मगर यदि मौसम ने रोक लिया
तो तुम न मुझसे मिल पाओगे
ना ही बीच राह से लौट पाओगे
और मैं बेबस होकर रह जाऊँगी....
चले जाओ अपने शहर वापस !

सुनो प्रिया,
सखिया मेरी...
विदा लेता साल, जाते-जाते
मुझे तुम्हारी यादों से सराबोर कर गया।
दिसंबर की आखिरी रात
और जनवरी की पहली सुबह, बहुत भीगी हुई थी
इतनी भीगी हुई
कि न चाह कर भी पूरे दिन मैं बस तुम्हें ही जीता रहा, सोचता रहा
तुमसे ही बातें करता रहा।
तुम्हारी मुस्कान
तुम्हारी आँखें
तुम्हारे होंठ
तुम्हारे वो उजले दाँत
और खनकदार हँसी तुम्हारी !!!

अभी कल ही की तो बात है....
नहीं कल की कहाँ !
इस बात को तो समय हो गया।
पिछले के पिछले साल,
जब कार्तिक मास सीढ़ियाँ उतर रहा था
और हमारा प्यार परवान चढ़ रहा था
चाँद के जन्म से लेकर जवान होने तक,
छत पर टहलते हुये हर दिन तुमसे बातें करता था।  
अक्सर हम चाँद के पास वाले सितारे को लेकर बहस किया करते थे।
जो कभी चाँद के ऊपर रहता,
तो कभी नीचे आ जाया करता था ।

और तुम...
अपने सपनों के साथ कदमताल करती हुईं
जब देर रात घर लौटतीं
तो ग्राउंड-फ़्लोर से लेकर आठवीं मंज़िल तक का सफर,
लिफ्ट में सेल्फ़ी लेते हुये तय करती थीं।  
फिर अपनी पसंद की कोई एक तस्वीर मुझे WhatsApp कर देती थीं।
याद है... 
तुम्हारा एक सेल्फ़ी,
सफ़ेद गाउननुमा ड्रेस पर काली-सुनहरी झिलमिल बार्डर वाला।
रातों को जब मेरी नींद रूठ जाती,
तो तुम्हारी वही तस्वीर मुझे लोरी गाकर सुलाया करती थी।
आज साल की पहली सुबह
मेरी तर्जनी और अंगूठा उस तस्वीर को एनलार्ज कर-कर के परेशां हो उठे ।
मगर वो तस्वीर नहीं मुसकाई  
कल रात की बारिश में धुंधला गयी वो तस्वीर....
पता नहीं कैसे !!!

सुनो...
फिर से किसी रात ग्यारह बजे के बाद
लिफ्ट में अकेले सफर करते हुये
एक सेल्फ़ी लेकर भेजो ना !!!
देखो,
अब तो जाने कितनी रुतें एक-दूसरे की पीठ पर पैर रख कर ऊपर और ऊपर चढ़ती जा रही हैं।
मेरे मन का एक कोना इन्हीं ऋतुओं के बीच कहीं दब कर रह गया है सखी !!!

लो तुमसे बातें करते करते जाने क्या हुआ
अचानक मैंने अपना कंबल उठा कर
ठिठुरते हुये Buddy को ओढ़ा दिया।
और मेरा मन ...
तुमसे मिलन का भाव सँजोकर तृप्त हो उठा।
यूँ ही अनायास ...
नव-वर्ष कि शुभकामनाएँ

तुम्हारा

देव






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