मई का महीना है
दो दिन से गला दुख रहा है
एक स्थायी दर्द क्या काफ़ी नहीं था ....
जो और दर्द चले आते हैं
जब-तब मेरा जी दुखाने को !!
जाने क्या हुआ पिछले दिनों
एक बार हिचकी चलनी शुरू हुई
तो बंद ही नहीं हुई।
लाख ठंडा पानी पीया
खूब मीठा खाया
शॉक-ट्रीटमेंट भी लिया
मगर हिचकी थी
कि बंद ही नहीं हुई
और मेरी नादानी देखो तो
सबकुछ कर लिया
बस तुम्हारा नाम नहीं लिया।
पूरे दो दिन जूझता रहा मैं
दुखती हुई पसलियों
और हिच्च-हिच्च की आवाज़ के साथ
फिर अचानक तुम्हारे नाम को
दस मिनिट तक मन के धागे से बुनता रहा
और हिचकी चली गयी ... मुझसे दूर !!!
“चीज़ें जैसी हुआ करती हैं
हम उन्हे वैसा कभी नहीं देखते
हम तो बस वही देखा करते हैं
जो हम देखना चाहते हैं।”
उस दिन तुमने ये क्यों कहा था ?
बोलो भला... !!!
मैंने तो बस यही पूछा था ना
कि
“आज जा रही हो मिलने ?”
मुझे तनिक भी एहसास न था
कि बात इतनी बढ़ जायेगी।
"कभी दिल में आरज़ू-सा, कभी मुँह
में बददुआ-सा,
मुझे जिस तरह भी चाहा, मैं उसी तरह रहा हूँ।"
हा दुष्यंत.....
जाने क्या सोचकर तुमने ये शेर लिख दिया;
कि मेरी प्रेयसी को कह दे,
कोई ये जाकर....
कि उसकी रज़ा ही मेरी रज़ा है।
कि उसकी चुप्पी,
तीखी नोक सी चुभती है मुझको।
कि उसकी एक मुस्कान में,
मेरे सातों आसमान हैं !
हाँ,
मैं मानता हूँ
बहुत सोचा करता हूँ मैं
और मेरी सोच के साये तले
कुछ पग्गल भाव डोला करते हैं
मगर मैं करूँ तो भी क्या
मुझे तो बस तुमसे प्यार है..... !!
“इक पल ठिठका तो लगा तू आस-पास है
चाहे तू
दूर रहे अब भी तू खास है।”
परी मेरी....
जानती हो,
कैसे गुज़र रहे हैं मेरे दिन-रात
बस एक आँचल के सहारे !
तुम्हारा आँचल...
जो लहराता रहता है मेरे कमरे में
और उस आँचल से छन कर आती हवा में
.... एक विलक्षण सुगंध है
तुम्हारे अहसास से भरी हुई।
सुगंध....
जो बार-बार कहती है
कि तुम यहीं मेरे इर्द-गिर्द हो कहीं !
सुनो...
कई रातें गुज़रीं
ठीक से सो नहीं पाया हूँ।
मेरा एक काम करोगी ?
सुक़ून नाम की चिड़िया अगर कहीं मिल जाये
तो उसे मेरे आँगन का पता दे देना।
बस... इतना ही !
तुम्हारा
देव
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