Thursday 12 May 2016

काश, मेरा नाम ‘यों ही’ होता


उस रात तुमने
बिना वजह ही
WhatsApp पर एक मुस्कान भेजी,
और मैं ये सोच कर खिल उठा
कि तुम आज खुश हो।
मैंने खुशी का कारण पूछा
तो तुम बोलीं
“कुछ नहीं
यों ही।”
मैं अनायास ही कह उठा
कि
“काश,
मेरा नाम ‘यों ही’ होता
और मैं;
तुम्हारी खुशी का सबब बनता रहता।”
तुमने भी तुरंत जवाब दिया
“अरेss
कमाल है देव
जाने क्या क्या बोला करते हो
सो जाओ अब
गुडनाइट।”
गुडनाइट कहने के बाद
तुम एक पल को भी कहाँ ठहरती हो !
तुम तो last seen हो गईं
मगर मैं देर तक तुम्हारे साथ रहा
तुम्हारी प्रोफ़ाइल-पिक से बातें करता रहा ।

“ब्लैक कैज़्युअल टी-शर्ट
काली फ़्रेम वाला वो ऐनक
खुले, बिखरे, कंधे पर डोलते घनेरे बाल
दूज के चन्दा सी कटीली आँखें
बिना लिपस्टिक वाले
भरे-भरे अधखुले से होंठ;
दमकता हुआ सादगीपूर्ण सौन्दर्य !
क्यों कर न बनना चाहूँ मैं
तुम्हारी खुशी का सबब
रम्या मेरी....
बोलो !!!
और हाँ
अभी ये प्रोफ़ाइल-पिक लगी रहने देना
घूंट-घूंट पीना है मुझे
तुम्हारा अनिंद्य सौन्दर्य !!!

कितनी विचित्र होती है
प्रेमी और प्रियतमा की ये दुनिया।  
वो छोटी-छोटी बातें
जो दूसरों के लिए गौण हुआ करती हैं 
उन्हीं बातों में
संसार बसा करता है
दो प्रेमियों का।

खुशनसीब हैं हम
जो इकदूजे से अपना प्यार बाँट सकते हैं।  
वरना,
कभी तो सिर्फ यादें ही बची रह जाती हैं
और बाकी सब उड़ जाता है
हवा के साथ ... धुआँ बनकर !

वो एक आदमी
जो छोड़कर चला गया
भरा-पूरा जिस्म
और बहुत थोड़ी निशानियाँ
...अपने पीछे।
निशानियाँ...
जिनमें शामिल हैं
कुछ म्यूरल्स
कुछ पेंटिंग्स
और एक मासूम सा सात साल का बेटा !
अरे हाँ
एक अकेली औरत भी...
उस आदमी की स्थायी याद जैसी।

इसने उसको और उसने इसको
दोनों ने शिद्दत से चाहा इक दूजे को
मगर अब,
वो अकेली असमंजस में है।
ज़िंदा और बेजान के बीच,
फ़र्क जो नहीं कर पाती।
कभी म्यूरल्स से बातें करने लगती है
तो कभी अपने बेटे को बुत समझ बैठती है।  
अपने प्रेमी की पेंटिंग्स को
हर बार कला-वीथिका की प्रदर्शनी में रखती है,
मगर बेचती नहीं।
एक बार गौर से देख लिया था
उनमें से एक पेंटिंग को मैंने। 
रूह तक सिहर उठा था....
अब तक के देखे-बूझे सारे आयाम
ध्वस्त हो गये थे। 
पहले कभी ऐसी अनुभूति नहीं हुई थी
मेरी इन आँखों को।

हमारे चेहरे की ये चमक
किसी न किसी इंसान से जुड़ी होती है।
इंसान जाता है,
तो चेहरा भी रूखा सा हो जाता है।  
खुशियाँ कुम्हलाने लगती हैं
और साथ बिताए हुये पल
सूख कर झर जाते हैं।
मेरे चेहरे की चमक हो तुम
मेरी आभा...
कांता मेरी !!
अब कभी न कहना
कि जाने क्या-क्या बोला करता हूँ मैं।  
मुझे कहने दिया करो,
मेरे मन की सारी बातें।  
मगर हाँ,
तुम वैसी ही समझदार बनी रहना
जैसी तुम हो !  
हँसकर भुला देना,
मेरी बे-मतलब की बातें
इनपर ज़्यादा ध्यान मत देना।  
प्लीज़ !!!

तुम्हारा

देव 


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