प्रिय देव,
तुमने कहा था न एकबार
कि कभी-कभी
कुछ घटनाएँ पहली बार घट कर भी, जानी-पहिचानी सी लगती हैं।
कोई बात,
कोई मुलाक़ात,
या किसी अनजानी जगह के प्रति
एक अजीब सा आकर्षण।
मैं समझ नहीं पाती
कि जब तुम खुद काल से परे जाकर
जीवन को देख आते हो
तो फिर ये क्यों कहते हो?
कि साल आख़िरी साँसें ले रहा है !
कुछ प्रश्नों के उत्तर
जब यथार्थ से न मिलें
तो अलौकिक को पुकारना,
....निरीह बनकर !
जैसे माँ चली आती है न
बच्चे के दारुण आह्वान पर
वैसे ही वो अलौकिक आ जाएगा
ख़ुद चलकर तुम तक।
वेदना की चक्की में,
कण-कण क्यों पिसते रहते हो देव !
बोलो...
याद है वो बूढ़ा,
जिसकी आवाज़ सुन
तुम खिल उठे थे
और बोले थे
कितनी जवान है, इनकी आवाज़।
क्या वो सिर्फ आवाज़ थी?
या लावण्य भी था दिप-दिप दमकती आत्मा का !
विज्ञान कहता है ना
कि ऊर्जा नहीं मरती
बस रूप बदला करती है।
फिर तुम क्यों दफनाने लगे?
पूरे एक साल को !
सर्द दिनों की गुनगुनी दुपहरी में
किसी सब्ज़ीवाले की आवाज़ सुनी है?
सुनी तो होगी;
मगर ध्यान नहीं दिया।
दूर से पास आकर,
फिर दूर जाती आवाज़।
वक़्त भी ऐसा ही होता है पगलू
कहीं से चलकर हमतक आता है
फिर धीरे-धीरे
हमसे दूर हो जाता है।
और हम इस भरम में जीते हैं
कि वक़्त खत्म हो गया।
वक़्त कभी नहीं मरता देव
वक़्त और आत्मा सहोदर हैं।
बस कुछ बातें हैं,
जो हम नहीं समझ पाते
देह से परे बातें
....देहातीत बातें।
अच्छा सुनो,
इस क्रिसमस पर तुम
उस पुराने चर्च जाओगे न !
चर्च...
जिसके साथ तुम्हारी, कोई पिछली
याद जुड़ी है।
ज़रूर जाना
तुम्हें सुकून मिलेगा।
और हाँ,
खुले बालों वाली कोई लड़की
यदि कैन्डल जलाती दिख जाये
तो उसका ध्यान रखना
खुली हुई ज़ुल्फों का
आग की लपट से
एक अजीब सा सम्मोहन है।
पता है...
इस बार मैं सांता की टोपी पहनकर,
कहाँ जा रही हूँ ?
दो बूढ़ों और चार बच्चों से मिलने
ढेर सारी चॉकलेट्स
और मुट्ठीभर दवाइयाँ लेकर।
जीवन अपनेआप में
बहुत बड़ा विरोधाभास है देव
समझ में आकर भी,
समझ से परे।
लेकिन तब भी
जीवन एक उत्सव है।
अगर जो तुम इसको,
पूर्णता में जी लो।
Merry Christmas My Love
तुम्हारी
मैं !
No comments:
Post a Comment