Thursday, 3 December 2015

पता है, मेरा सेफ़्टी-वॉल्व हो तुम



स्वीकारता हूँ
कि मैं नॉस्टैल्जिक हूँ
शायद तब से....
जब जानता भी नहीं था
कि नॉस्टैल्जिया का मतलब क्या है !

रातों को जब
बोझिल पलकों के साथ भी
सो नहीं पाता
तब एक विचार
बरबस चला आता है।
कि बचपन में किस चीज़ का नॉस्टैल्जिया था मुझे ?
क्या पिछले जनम का !!

पता है
मेरा सेफ़्टी-वॉल्व हो तुम।
अगर तुम नहीं मिलतीं
तो फट चुका होता
....जाने कब का !!!

वक़्त....
जैसे सर्कस के एरिना में झूलती हुयी रस्सियाँ,
और उम्र....
जैसे उस पर कलाबाज़ी करते कलाकार !
नीचे कोई सुरक्षा जाल भी नहीं।
कमाल तो देखो
पता ही नहीं चलता
एक रस्सी पर झूलते-झूलते
जाने कब दूसरी रस्सी हाथ में आ जाती है।
और वो पहले वाली रस्सी अदृश्य हो जाती है।
हम फिर नयी रस्सी को अंगीकार कर
झूलने लगते हैं
इधर से उधर !!

सुनो....
फिर-फिर क्यों लौटा लाती हो मुझे तुम ?
मेरे पिछले दिनों में !
कभी-कभी लगता है,
कि तुम किसी टाइम-मशीन पर सवार रहती हो।
जाने कब, कहाँ और कैसे
चूल्हे पर रोटियाँ बनाने पहुँच गईं।
और तुम्हारी उस एक तस्वीर ने
मुझे जाने कितने बरस पीछे पहुँचा दिया।

ये मिट्टी का चूल्हा
ये चकला-बेलन
देसी तवा, पीतल के बर्तन
..... उफ्फ़ !!!
देगची में तरकारी
परात में लगा हुआ आटा।
माँ याद आ गईं !
सर्दी के दिनों में
पूरी बाँह का ब्लाउज़ पहने
गरम-गरम रोटियाँ सेक कर खिलाती माँ।
चूल्हे की गरम राख़ में
मीठे शकरकंद दबाकर
भोजन के बाद मीठा खिलाती माँ !!!

प्यारी .....
जब तुम मुझे इश्क़ कह कर बुलाती हो ना
तो मेरी सारी बेचैनियां तिरोहित हो जाती हैं। 
तुम जब मेरा खयाल रखती हो न
तब मैं देव नहीं रहता
एक नन्हा सा छौना बन जाता हूँ
अबोध बच्चा
ममता की छांह तलाशता हुआ !!!

एक गुज़ारिश है तुमसे
वादा करो
कि आज के बाद
कभी मुझसे ये न कहोगी
कि मैं तुम्हें दुनिया की नज़रों से बचाकर रखूँ
कि मैं तुम्हारा नाम, तुम्हारा चेहरा सबसे छिपाकर रखूँ
मुझसे ये न कहोगी
कि,
“देव,
साँस भी तो साथ रहती है
पर किसी को दिखती नहीं।”

चाहता हूँ,
बस एक बार....
चूल्हे पर रोटी बना कर
तुम मुझे अपने हाथों से खिलाओ।  
और उस एक पल को...
मैं अपने भीतर
कुछ यूं सहेज लूँ,
कि कोई मुझसे जब
तुम्हारी बात करे
तो मेरी आँखों में उसे
तुम दिख जाओ,
तुम्हारा अक्स दिख जाये
तुम्हारा नाम दिख जाये !
कह दो कि ऐसा होगा...

बहुत जल्द !!
हाँ कह दो ना .....

तुम्हारा

देव 




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