देव
....
कैसे
हो ?
बारिश
बंद हुई जब से ....
तबसे
मैंने ब्रिस्क-वॉकिंग फिर शुरू कर दी है।
हर
रोज़ जाती हूँ,
यूनिवर्सिटी
गार्डन में ...
जंगल
के रास्ते !
कभी
सुबह शॉल लेकर
तो
कभी शाम को ..... सन-ग्लासेस लगाकर।
पूछोगे
नहीं क्यों ?
अपने
भावों को भीतर सहेजना नहीं आता मुझे
मेरा
चेहरा चुगली कर देता है,
ख़ुद
अपनी ही ....
....
इसलिए !
उस
दिन गोल चक्कर पर
तेज़-तेज़
चलते हुए
मैं
अचानक ठिठक गयी।
एक शख़्स
दिखा मुझे
बिलकुल
तुम जैसा ....
ऐनक
लगाये।
उसके
भी पैर में तकलीफ थी।
जाने
क्या हुआ,
निगाह
नहीं हटा पायी मैं उससे।
फिर
ख़ुद को टोका
चिकोटी
काट कर
लगा....
जाने
क्या सोच लेगा वो
… मेरे बारे में !
मगर
वो तो खोया था,
ख़ुद
ही में कहीं।
मुझ
पर रत्ती भर ध्यान नहीं था उसका।
तभी
एक लड़की उसके पास आई,
बड़ी
ज़हीन, नफ़ीस सी
उसे
हाथ का सहारा देकर उठाया
अपने
कंधे पर उस शख़्स का हाथ रखा
फिर
ले चली उसे,
अपने
साथ !
और अभी
परसों......
सुबह
जल्दबाज़ी में
शॉल
लेना भूल गयी
हवा
ठंडी थी,
रही-सही
कसर मेरे स्लीव-लेस टॉप ने पूरी कर दी।
दोनों
कोहनियाँ बाँध कर ठिठुरन से बच रही थी
कि तभी
....
तुम आ गए।
जाने
कैसे और कहाँ से !!
हाथों
में दुशाला लिए।
डार्क-ब्लू
शर्ट और ऑफ-व्हाइट पतलून पहने
बिलकुल
वैसे
जैसे
तुम इन दिनों अपनी WhatsApp प्रोफ़ाइल-पिक में दिखते हो।
मेरे
करीब आकर तुमने
वो दुशाला
हौले से मेरे काँधों पर लपेटा
फिर
धीरे से पूछा
“ अब
ठीक है !”
और बस
.....
फिर
जाने कहाँ चले गए तुम !
पता
है देव,
उस एक
पल ने मुझे
ख़ुद
से निकाल कर…
तुम
में पिरो दिया।
ऐसा
लगा जैसे
एक अलौकिक
हवा
मेरे
चेहरे पर फूँक मार कर
मुझे
नया कर गयी।
....
बिलकुल नया !
सैकड़ों
किलोमीटर दूर बैठकर भी
तुम्हारे
अहसास भर से,
मेरे
दिल को जाने क्या हो जाता है।
अजीब
सा धड़कने लगता है
जिसे
बताने को शब्द नहीं हैं
...मेरे
पास !!!
क्यों
नहीं समझ पाते कभी-कभी
मुझको, तुम !
देव
मेरे,
मन के
मिलन के लिए एफ़िडेविट की ज़रूरत कब हुयी भला?
और प्रेम
की भाषा तो शब्द-विहीन है रे पीहू
फिर
संशय क्यों ले आते हो
बार-बार
तुम !!
कहो?
तुम्हारी
मैं
!
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