Friday 11 September 2015

तुम्हीं कहती हो न..... कि शरीर भी आत्मा की परीक्षा लेता है






कुछ कहूँ तुमसे ......
कभी-कभी मेरी हालत उस धरती जैसी हो जाती है
जिसने बरसों से पानी नहीं चखा !!!
हाँ,
मैं बंजर हो जाता हूँ प्रिये.... कभी-कभी !
छटपटाता हूँ,
बे-सबब फिरता हूँ यहाँ-वहाँ।
मगर बाहर नहीं निकाल पाता,
अपने भीतर घुमड़ते भावों को।

तुम उस दिन बोली थी ना...
कि,
“मुझे परियों से बातें करना पसंद है।”
यक़ीन मानो,
मुझे तब कोई अचरज नहीं हुआ था
उलटे मैंने तो कल्पना कर ली थी
सुनहरे लंबे इकलौते पंख के सहारे उड़ रही हो तुम
पूरी धरती का चक्कर लगाने के लिए।
उफ़्फ़ .....

एक बात कहूँ,
तुम्हें क्या पसंद है ये तो तुमने कह दिया
मगर मुझसे क्यों नहीं पूछा कभी
कि मैं क्या चाहता हूँ !
मैं ....
सिर्फ प्यार करना चाहता हूँ
... तुमसे प्यार !!!



वो कविता
जो लिख रही हो तुम
पिछले कई जन्मों से !
और लिखते रहना चाहती हो अभी अगले कई जन्मों तक !
उस कविता को,
इसी जीवन में पूरी कर  दो न !
अधूरा रहने की, तुम्हारी ये कैसी ज़िद है सखी।
मैं अब पूर्ण होना चाहता हूँ
.... तुम्हारे साथ !!!
ये रंग,ये रूप, ये नाम, ये शरीर
हर बार बदल जाता है।
कहाँ रह पाता, सबकुछ वैसा ही !
फिर क्यों न अभी, इसी पल
.... एक दूसरे को जी लें ।

आँखें खोल कर देखें एक दूसरे को
लगातार ....
इतनी देर तक देखा करें
कि पथरा जाएँ हमारी आँखें
और आँसू झरने लगें इनसे !
फिर अचानक,
पलकें बंद कर लें
और इतनी देर तक पलकों को बंद रखें,
कि देखने वाले भी हमें निर्जीव मान लें।
आओ....
ऐसे जी लें हम-तुम
... एक दूसरे को ।

अब और बर्दाश्त नहीं होता
ये सूख कर चटकता,
पथरीला बंजरपन !


सुनो ....
ये वक़्त भी गुज़र जायेगा।
तुम्हीं कहती हो न
कि शरीर भी आत्मा की परीक्षा लेता है।
शायद मेरे लिए भी
कुछ ऐसी ही घड़ी है ये
.... परीक्षा की घड़ी।

तस्वीर नहीं भेजना चाहता था मैं अपनी
तुम्हारी ज़िद ने लेकिन, मजबूर कर दिया।
लेटा भी रहूँ, तो कब तक भला
बिस्तर पर यूं ही।
हाँ,
अब पानी ज़्यादा पी रहा हूँ
होठों का सूखापन कुछ कम हो रहा है।

आज सुबह कुछ अजीब हुआ
ऐसा लगा ....
जैसे किसी ने आवाज़ दी
बिस्तर पर लेटे-लेटे बाहर देखा
तो तुम्हारा सूरज खड़ा था।
मुझे पुकारता
नन्हा सा,
कोमल प्रकाश वाला,
नवजात सूरज !
मानो कह रहा हो
“देव,
हर बार उदित होने के लिए
अंधकार से गुज़रता हूँ
देखो मुझे,
मैं रात में नहीं था
और अब फिर से आ गया हूँ
तुम्हारे पास !”

सुनो प्यारिया.....
मैं भी उगना चाहता हूँ
इस सूरज की तरह।  
फिर से,
नवजात बनकर;
निर्दोष होकर।
कह दो कि ऐसा होगा
जल्द से जल्द !

तुम्हारा

देव









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