कुछ
ख़ुद को बिंदास दिखाते हैं,
कुछ
स्वीकार नहीं पाते हैं,
कुछ
अंदर ही अंदर कुम्हलाते हैं,
कुछ
बेस्वाद बताते हैं,
और
कुछ समझ नहीं पाते हैं।
लेकिन
ये सच है
कि
रिश्ते बहुधा बासी हो जाते हैं।
कोई
संकरी गली खोजता है
तो
कोई राजमार्ग की और दौड़ता है।
किसी
से बचने के लिए,
या
फिर खुद से छिपने के लिए !
तुम्हें
‘एक्सप्लोर’ करने का बड़ा शौक है न
और
मुझे तुम्हारे ख़यालों में रहने का !
तुम
जिसे यात्रा कहती हो
मेरे
लिए वो लिए वो मंज़िल है।
जिसे
जैसा भाया
उसने
वही नाम दे डाला
हाँ
ये तय है
कि
पहली – पहली बार
इसमें
जो उमंग, जो अनुभूति और आकर्षण रहता है
उसकी
किसी से तुलना नहीं ....
और
यदि तुलना है तो सिर्फ दिव्य से।
कि
पा लिया हो सैंकड़ों स्वर्ग का सुख।
कि
मिल गया हो ईश्वर का सानिध्य !
हाँ
कुछ-कुछ ऐसा ही होता है
पहली-पहली
बार।
और
फिर धीरे-धीरे
कम
होने लगती है छटपटाहट
भोथरी
होती जाती है सारी संवेदनाएँ
बस
एक एहसास बाक़ी रहता है सूखी पपड़ी सा
जिसे
कुरेदो तो घाव रिसने लगता है।
कमाल
है प्रिये.....
ये
है हममें से अधिकांश का सच।
कड़ुवा
होकर भी सच्चा सच !
चलो
कुछ ऐसा करें
कि
हम-तुम बन जाएँ दूसरे।
तुम
बन जाओ मेरे लिए दूसरी औरत,
मैं
बन जाऊँ तुम्हारे लिए दूसरा आदमी।
फिर
से देखें हम एक-दूजे को
कि जैसा
सोचा था कभी ख्वाबों में !
फिर
से ढूँढें इक-दूजे में कोई अपने जैसा।
फिर
से नज़रअंदाज़ कर दें
मोटी-मोटी
गलतियाँ।
फिर
से कसकर थाम लें
प्यार
की वो बारीक़ डोर
बहुत
दिनों से मर गया है
हमारे
अंदर का प्रेमी !!!
चलो...
क्यूँ
न इक बार
उसे
दफनाने से पहले
उसमें
फूँक कर देखें
फिर
से प्रेम !!!
बैठे-बैठे
यूँ ही मन में एक ख़याल आया।
तुम्हारा
देव
No comments:
Post a Comment