Saturday, 16 May 2015

एक क्षणभंगुर निशानी !!!



प्रिय देव

गीले पैरों के निशान तो कई बार देखे होंगे !
उन निशानों को कभी गहराई से महसूस किया ?
कभी उस रहगुज़र के बारे में भी सोचा ?
वो अजनबी.....
वो जाने कौन.....
जो छोड़ कर चला गया,
अपनी एक क्षणभंगुर निशानी !!!

अक्सर ऐसा क्यूँ होता है देव ?
कि हम निशानों का पीछा करते रहते हैं।  
निशानों पे निशान बनाते चलते रहते हैं।
मगर बहुत कम उसके बारे में सोचते हैं,
जो हमसे पहले एक निशान छोड़ गया।
शायद सही भी है
सिर्फ आँखों से कब दिख पाता है
सूख कर मिट चुका निशान !

आज मुझे एक अजीब से तारे के बारे में पता चला !
सितारा जो दिखता नहीं....
वैज्ञानिक उसे डार्क-स्टार कहते हैं।
मैं तो समझती थी कि भाव और विश्वास सिर्फ हम प्रेमियों की थाती है।
लेकिन ये जान कर अच्छा लगा,
कि वैज्ञानिक भी उस पर विश्वास करते हैं
..... जिसे वे चाह कर भी किसी और को अनुभव नहीं करा सकते।
   

प्रेम भी तो कुछ-कुछ ऐसा ही है देव,
छूट गए पद-चिन्हों जैसा !!!
विश्वास की मजबूत डोर को थामे हम सब यकीन करते हैं,
उन प्रेमियों पर;
जिनके पद-चिन्ह इस इक्कीसवीं सदी में धुंधलाने लगे हैं।

कौन जाने शीरी-फरहाद, सोहनी-महिवाल, हीर-राँझा या लैला-मजनू थे भी
या किसी दीवाने ने मन ही मन गढ़ लिए थे इनके किरदार !
मगर विश्वास तो देखो....
कि आज भी प्रेमी इनके नाम कि दुहाई जब-तब देने लगते हैं।

एक राज़ की बात बताऊँ ?
जब पहली बार मैंने ई-मेल आइ.डी. बनाया
तो पता है उसका पासवर्ड क्या रखा था ......
मिर्ज़ा-साहिबां !

पता नहीं क्यों ?
ये साहिबा मुझे अधूरी लगती है, मिर्ज़ा के बगैर !
कहीं पढ़ा था मैंने ...
“मन मिर्ज़ा तन साहिबां।”
बस इसी एक भाव के सहारे जीती हूँ मैं।
कोई और खयाल मुझे आंदोलित ही नहीं कर पाता।
आनंद ही नहीं देता।
मुझे मेरे होने का एहसास नहीं होता इसके बगैर।

कभी तुम भी कोशिश करना,
मेरे मन को अपने तन में लाने की !
तुम्हारे तन में मेरे मन को बसाने की !
बड़ा मज़ा आयेगा।

तुम्हारी

मैं !



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