कहो
देव,
बड़ा
शौक है ना तुम्हें?
खुद
को साधारण और मुझे ख़ास बताने का !
कभी-कभी
लगता है
कि,
खुद
को मामूली बता-बता कर ही
तुम
मेरे लिए वो “Special one” बन गए हो
जिसके
आने की उम्मीद मैं छोड़ चुकी थी।
वो गुमसुम
उम्मीद, वो रूखा इंतज़ार....
जिसे
तुमने आकर पूरा कर दिया एक दिन अकस्मात !
वैसे
तुम हो बड़े स्मार्ट,
पूरी
और आलू की सब्ज़ी की बातें कर खुद को मामूली बताते हो।
ये कहो
न,
कि उस
दिन मेरे हाथों की बनी “सिनमन-कुकी” न खाने की सफाई दे रहे थे।
देसी
हो या विलायती....
स्वाद
तो बस स्वाद है।
हर स्वाद
किसी न किसी के लिए अपना सा होता है।
हर स्वाद
में किसी मिट्टी की महक घुली होती है।
जानती
हूँ,
मेरे
स्वाद थोड़े अटपटे से हैं।
करूँ
भी तो क्या
साल
में आधा वक़्त पहाड़ों पर गुज़रता है मेरा
और आधा
वक़्त विलायत में।
रहे
तुम...
तुम्हारी
तो बस एक ही दुनिया है
ख़यालों
की दुनिया।
बातें
तो बड़ी मीठी करते हो,
पर ख़यालों
ही ख़यालों में किस से मिल आते हो मुझे क्या पता !!!
अब मुँह
छोटा न कर लेना,
तुम्हें
छेड़ना मुझे भी अच्छा लगता है।
तुम्हारी
उस सखी की तरह,
जो अक्सर
तुम्हें छेड़ कर असहज कर दिया करती है।
मेरा
एक काम करोगे.....
किसी
सुबह उठकर उस दरिया तक जाना
जहाँ
कभी तुमने
मेरा
हाथ थामा था ... पहली बार।
उस दरिया
में उतरना,
घुटने-घुटने
पानी तक।
फिर
किसी सूखी पतली टहनी से
मेरा
नाम लिखना;
पानी
को चीर कर।
एक बार
भी यदि,
मेरा
नाम उकेर लो....
तो मैं
मानूँगी
कि मैं
असाधारण
और तुम
मामूली !
अच्छा
सुनो
आज मैंने
एक नयी डिश बनाई
“...
चॉकलेट चीज़ सेंडविच” !
भेज
रही हूँ
खाकर
बताना, कैसी लगी।
अरे
हाँ
मेरे
हाथों और नेल-पेंट को देखकर
फिर
से कोई कविता न करने लगना।
वो सिर्फ
तस्वीर है
मैं
नहीं !
बुद्धू
कहीं के
तुम्हारी
मैं
!
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