Thursday 16 April 2015

वजह........ वही अटल, अजर, अमर ...प्यार !


कोई खुद से भी ऊब सकता है भला ?
और ऊब भी इस कदर
कि जैसे शरीर शरीर नहीं एक कमरा है।  
और एक ही कमरे में दो दुश्मन बैठे हैं
....एक-दूसरे पर घात लगाये।
फिर भी हँसती रहती है पागलों की तरह !
वजह........
वही अटल, अजर, अमर ...प्यार !

उसने भी किसी को चाहा,  
जिसे चाहा उसे पा भी लिया।
और फिर खुद खाली होती गयी हर दिन, हर पल !!
और अब रोज़ सुबह नाश्ते में मुट्ठी भर गोलियाँ मुँह-बाये उसका इंतज़ार करती रहती हैं।

और वो अब भी  
आईने से नज़र बचा कर उन गोलियों से किनारा कर लिया करती है।
मैंने देखा है,
उसके घर की पीछे वाली खिड़की के ठीक नीचे
ताज़े केप्सूल और गोलियों को एक ही दिन में एक्स्पायरी होते हुये।

बड़ी अजीब है वो
जंग के मैदान में टहला करती है
बिना किसी कवरिंग फायर के।

अक्सर कहती है

“ देव,
तुमसे बात करके बड़ा सुकून मिलता है।
यकीन मानो
तुमसे जितना हँस-बोल लेती हूँ।
उतनी सहज तो कभी खुद के साथ भी नहीं हुयी।”

कभी-कभी मुझे छेड़ने लगती है
मैं असहज हो जाऊँ तो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगती है।
मगर कल हँसते-हँसते अचानक मौन से लिपट गयी।
कुछ देर बाद बोली
“आसमान में उड़ते पंछी को
जैसे किसी ने दीवार पर टाँक दिया।”

“किसने?
चकित होकर मैंने पूछा

“उसीने....
उसके सिवा किसी और को ये हुनर आता भी तो नहीं।”

जाने किस बहाव में बह गयी।
लेकिन खुद को संभाल लिया उसने।
“जानते हो देव,
मेरा डॉक्टर मुझसे क्या बोला?
कहने लगा मेरी आँखें ही मेरी नब्ज़ हैं
मगर मेरी आँखें तो सूनी हो चुकी हैं देव,
....पथरा गयी हैं !
कोल्ड-स्टोरेज में रखे, साल भर पुराने फल की तरह।
मैं करूँ भी तो क्या
मेरे प्रियतम को तो बाग से तोड़े हुये ताज़ा फल ही प्रिय हैं।
जिन पर सुग्गा अपनी चोंच के निशान छोड़ गया हो।
तुम्हीं कहो देव
क्यों रखूँ मैं अपना ख़याल?
मेरा कुम्हला कर सूख जाना ही बेहतर है।”

मैं उसे बड़ी देर तक समझाता रहा
और वो मेरे हर शब्द को अपने मौन में घोलती रही
वो चुप रहकर भी मनमानी कर गयी
और मैं बोल कर भी हार गया।

एक बात बताओ प्रिये
तुम और वो इतने अलग क्यों हो ?
वो प्रेयसी हो कर भी तुम सी नहीं।
और तुम स्त्री होकर भी उस जैसी नहीं !

क्या हर प्रेयसी इतनी ही अलग होती है?
तो फिर प्रेम क्यों एक ही है?
तो फिर प्रेम क्यों बस प्रेम है अनादि-काल से !!
कहीं प्रेम भी दीवार पर टँकी उस चिड़िया जैसा तो नहीं.....
जो अक्सर वक़्त के साथ,
एक बेजान और निर्जीव पुतले में बदल जाता है !
और फिर दीवार पर टाँक दिया जाता है
कभी किसी उम्र की निशानी के रूप में !!!
बताओ न?

तुम्हारा

देव



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