Thursday 19 March 2015

तुम, मैं और अनंत !!!





“ बोलती क्यों नहीं चुप्पी ...
कि धड़कनों का शोर सहा नहीं जाता अब !
तुम बोलोगी,
तो चुप्प जाएगा ये तनहा शोर।”

जाने कितने और कैसे भाव !
चले आते हैं अजनबी रास्तों से मुझ तक।
और फिर होने लगता है मेरा विस्तार ...
तुम बन कर !!!

याद है तुम्हें ?
वो ब्लॉग ...
जिसे मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए लिखा !
इंटरनेट की इस भीड़ भरी दुनिया में तनहा कोना खोज कर।
वहाँ भी मुझे उसने देख लिया था !!
वो ....
जो बातें तो तुम जैसी करती है,
पर बावरी जो मुझ सी है।
मचल उठती है बात-बात पर।
फिर कहने लगती है
“मुझे Love you  मत बोल देना ......
नहीं तो Delete हो जाऊँगी तुम्हारे जीवन से हमेशा के लिए।”
उफ़्फ़ .....
अजनबी भी खिंचे आते हैं मेरे ख़त की ख़ुशबू पाकर।  

तुम पर लिखे मेरे ब्लॉग को सबसे पहले उसने ही तो खोजा था...
और add कर लिया था अपने circle में मुझको !

पीली बोर्डर वाली सुर्ख गुलाबी साड़ी,
खुले हुये बाल,
ललाट पर लंबी काली बिंदिया,
और नीचे झुकी पलकें ।
तब भी लगे कि मानो देख रही है वो अनंत में !!!
अनंत ......
कितने कम लोग जानते हैं कि तुम अनंत में रहती हो।
वो अनंत जो मुझ में रच-बस गया है भाव बनकर....

आज वो बावरी मुझसे बोली....
“एक ख़त लिखोगे मेरे नाम !!!!
अभी ...
इसी वक़्त।”
मैं चकित रह गया।
जैसे-तैसे खुद को बटोर कर बोला ...
“कोई एक रेशमी ख़याल तो दो !
कैसे और कहाँ से शुरू करूँ ?
इस पर वो एकदम चुप हो गयी ....
और मैं किसी अनिष्ट की आशंका से ग्रसित होकर, उसके होंठों की सीवन उधेड़ने का जतन करते हुये बोला ........
“दूर बैठे टेलिपेथी ही दे दो, ताकि मैं ख़त लिख सकूँ।”
इस बार वो हँस पड़ी ।
...बेतहाशा !!!
और मैं असहज हो गया ।

तुम्हीं कहो...
प्यार तो विज्ञान से परे है न ?
फिर क्यूँ तौलने लगते हैं सब प्रेम को ....
तकनीक की तुला पर ?

तुमने तो कई बार दूर बैठे ही मुझे अलौकिक दृश्य दिखाये हैं !
फिर उन्हें साझा करना क्यों नहीं सिखाया ?
हाँ, प्रेम बाँटने से बढ़ता है
पर विश्वास के बगैर तो मूरत भी पत्थर है !
मैं उसे कैसे समझाऊँ ...
बताओ !
जानता हूँ तुम बड़ी मसरूफ़ रहती हो ,
लेकिन बस आज ...
आज कैसे भी,  मेरा एक काम कर दो !
शरीर से परे जाकर मेरा ये संदेश उस तक पहुंचा दो ..........
“कि प्रेम को किसी माध्यम की नहीं
प्रेम के भाव की ज़रूरत होती है।”
मेरे लिए इतना करोगी ना !

तुम्हारा



देव 


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