Thursday, 13 October 2016

कोई बंधन भी खोज लाना .... मेरे लिए !!



कुछ बोझ
सिर से उतरकर
मन पर ठहर जाते हैं
और फिर
हर साँस के साथ
ऐसे भारी होते जाते हैं
जैसे कि कोई रूई
पानी की हर बूँद के साथ हुआ करती है।

याद है तुमको
एक बार मैंने तोता पाला था
और जब ये बात तुमको बताई
तो तुम बिलकुल चुप हो गयी थीं
फिर बहुत देर बाद बोली थीं
“एक बच्चा है मेरे पास
उसे पता है
कि पंछियों की जगह
पिंजरे में नहीं
उनको तो
...बस खुला आकाश अच्छा लगता है।”

उसके बाद
मैं इतना मायूस हो गया
कि पूरी दो रातों तक नहीं सो पाया था।
फिर तीसरे दिन
आम की बगीची में जाकर
उस तोते को आज़ाद कर दिया !
...और पिंजरे को तोड़ कर
राह से गुज़रते एक कबाड़ी को दे आया था।

तुम्हें कभी नहीं बताया
मगर,
जब अगले दिन मैं वहाँ गया
तो वो तोता कहीं नहीं दिखा।  
मुझे लगा
कि उसने अपना आकाश चुन लिया
लेकिन ज्यों ही जाने को पलटा
चौकीदार ने पीठ के पीछे से आवाज़ देकर रोक लिया।
बोला...
“बाबूजी,
दिखते तो समझदार हो
फिर क्यों उस पंछी की हत्या के ज़िम्मेदार बने?
तुम्हारे घर पर रहता
तो अपनी ज़िंदगी जीता
मानुस की गंध चढ़ा कर लाये
और बेचारे को जंगल में छोड़ दिया
उसे दूसरे तोतों ने ही मार डाला।”
कुछ देर रुक कर फिर बोला....
“यकीन नहीं होता ना
चलो दिखाता हूँ।”
उसके बाद का दृश्य देखकर
मैं अवाक रह गया !

कुछ हरे-काले पंख बिखरे पड़े थे
तोते का कोई निशान नहीं था।
चौकीदार फिर बोला
“उस बेचारे मरे हुये प्राणी को
रात में किसी कुत्ते या बिल्ली ने चबा लिया।”

हा ईश्वर....
ये क्या अपराध कर दिया मैंने !
आज तक नहीं उबर पाया
उस सदमे से मैं !

जानती हो....
जब तुम मुझे मिट्ठू कह कर बुलाती हो
तो मैं अपने भीतर
उस तोते को महसूस करता हूँ
लगता है
जैसे उसकी आत्मा पुकार रही है मुझे
और चीख-चीख कर पूछ रही है।
“क्यों किया ये सब
.... मेरे साथ !”

ये बातें
तुमसे कभी नहीं कहना चाहता था
ना ही जो तुमको
तकलीफ देना चाहता था
मगर कल एक तोता
जाने कहाँ से  मेरे घर-आँगन में चला आया।
लाख चाहा कि वो उड़ जाये
लेकिन टस से मस नहीं हुआ।
बस फुदकता रहा और फड़फड़ाता रहा।
करीब से देखा तो जाना,
कि इसके पंख कतर दिये हैं किसी ने !
मैंने उसे खुला रखना चाहा
मगर कुछ दरिंदे आ पहुँचे।
भाग कर बाज़ार गया
एक बड़ा सा पिंजरा लाया
और उसको पिंजरे में पनाह दी।
मैंने कुछ गलत तो नहीं किया ना?

कभी लगता है
कि ये वही तोता है,
जो लौट आया है।
कभी लगता है
कि कुछ बाक़ी रह गया था,
जिसे पूरा करना है।

सुनो....
अब जब भी तुम
मुझे मिट्ठू कहकर पुकारो
तो कोई बंधन भी खोज लाना ....
मेरे लिए;
....पिंजरे जैसा !!

तुम्हारा

देव 

1 comment:

  1. बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन

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