कब
कहा मैंने
कि
मैं चिरंतन हूँ ;
एक
घटना हूँ मैं छोटी सी
तुम्हारे
जीवन की !!!
हाँ,
घुप्प
अंधेरे में
लालटेन
के उस पार से देखने पर
एक
साया दिखता है मेरा
फर्श
से लेकर छत जितना
कुछ
लोग साये को हक़ीक़त समझ बैठे
विराट
मानने लगे हैं मेरे भंगुर अस्तित्व को
मार
देना चाहते हैं वो
मेरे
भीतर के प्रेमी को
मैं
भी तैयार हूँ
साक्षी
भाव से खुद को मिटते देखने के लिये।
सुनो
...
बहुत
सी बातें अधूरी हैं अभी
वो
सच्चे किस्से
जो
तुमने कहना चाहे पर कह नहीं पायीं।
प्राग
के ‘काफ़्का म्यूज़ियम’ की वो बात
जो
आज तक तुमने नहीं बताई ।
चौड़े
चौकोर काले पत्थरों वाली
पुरानी
सड़कों पर
पैदल
घूमते हुये
साझा
की गयी वो अधूरी याद
जो
ट्राम-गाड़ी के आ जाने से पूरी नहीं हो सकी।
क़हवा-घर
का वो किस्सा
जब
तुमने खुद के लिये स्वीट-लेमन ज्यूस
और
मेरे लिये ब्लैक-स्ट्रॉंग कॉफी ऑर्डर की थी।
वो
भी तब...
जबकि
मैं तुमसे पूरे चौदहसौ सत्तर किलोमीटर दूर बैठा था।
हमारे
बीच में दो समुद्र और एक महाद्वीप की दूरी थी।
और
वो तस्वीर ....
जो
तुमने लंदन की एक खुशनुमा क़ब्रगाह में खड़े हो कर ली थी
मुझे
डराती नहीं वो तस्वीर
लेकिन
मैं फिर-फिर बाध्य हो जाता हूँ
सोचने
के लिये
तुम्हारे
और मेरे प्रेम को लेकर !
वो
कहते हैं
कि
मैं तुम पर आ कर रुक गया हूँ
कि
मैं फिर-फिर खुद को दोहरा रहा हूँ।
वो
चाहते हैं
कि
मैं आगे बढ़ जाऊँ
तुम
पर उड़ती सी निगाह डालकर।
मगर
मैं क्या करूँ
बड़ा
बेबस हूँ मैं।
क़लम
थामते ही
तुम
आ जाती हो मुझमें
नहीं
लिखना चाहता
तुम्हें
कोई ख़त
रोक
नहीं पाता मगर खुद को।
जानता
हूँ
ये
बड़ा खतरनाक है
क्योंकि
‘वो’ ऐसा नहीं चाहते
लेकिन
करूँ तो क्या
मजबूर
हूँ मैं भी।
अच्छा
सुनो....
कल
तुम्हें देखा
जागती
आँखों के सपने में
नीले
रंग का प्लाज़ो
काऊ-बॉय
हैट
और
काला दुपट्टा गले में डाले !
मुसकुराते
हुये जा रही थीं तुम
....
मुझसे दूर !
चेहरा मेरी तरफ
चेहरा मेरी तरफ
मगर
चल पीछे की ओर रहीं
थीं
धीरे-धीरे
और-और
पीछे !!
गनीमत
है
कोई
मुहाना नहीं था
तुम्हारी
राह में
पीठ
के पीछे।
याद
है एक बार
'ब्रेख़्त' की बातें करते हुये
हम
किसी तंग गली से गुज़र रहे थे
और
अचानक दीवार टटोलते हुये
हम
दोनों की उँगलियाँ छू गयी थी आपस में।
बस
उतना काफी है
हमारे
प्रेम की पूर्णता को।
कभी
उनके आगे ज़िक्र न कर बैठना
कि
हम एक-दूसरे को देख कर जीते हैं
नहीं
तो ....
कुछ
लोग माहिर होते हैं
प्रेम
का गला घोंटने में
और
अब
हम
दोनों सिर्फ प्रेम रह गए हैं।
अपनी
साँसें सँजोकर रखनी हैं तुम्हें
मेरे
लिए।
जानती
हो न !
बस
...
और
कुछ नहीं।
तुम्हारा
देव
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